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Tikdam Review - बर्फ गिराओ पापा लाओं, पिता और उसके दो बच्चों की भावुक कहानी



एमपी नाउ डेस्क

Tikdam Review- भारतीय सिनेमा में बाल फिल्मों को लेकर फिल्म मेकर्स की रुचि कम ही दिखती, गाहे-बगाहे कभी कोई फिल्म बना दी जाती है तो दर्शकों की रुचि ऐसी फिल्मों में कम देखी गई है। लेकिन इसके बाद भी भारतीय फिल्म इतिहास में ऐसी कई बेहतरीन बाल फिल्मों का निर्माण हुआ जिसने व्यावासयिक और क्राफ्ट दोनों ही दृष्टि से सफलता हासिल की। और जब- जब ऐसी कोई फिल्मों ने सफलता हासिल कि तो मुख्यधारा से हटकर सोचने वाले रचनात्मक शैली के लोगों के लिए एक प्ररेणा का काम किया है। शायद इसी प्ररेणा का नतीजा रहा कि हमें तिकड़म जैसी बाल फिल्म को देखने का मौका मिला, जी हां! तिकड़म अमित सन्याल, दिव्यांश द्विवेदी, आरोही सौद, अरिष्ट जैन जैसे बाल कलाकारों से सजी फिल्म 2024 को रिलीज की गई थी। ऐसी फिल्मों को लेकर बातें जितनी होनी चाहिए, उतनी होती दिखती नही है। ऐसे में कई बेहतरीन फिल्में आई- गई जैसी हो जाती हैं। यदि आप ने तिकड़म नही देखी है तो बिना पुरा पढ़े आप फिल्म देखने के लिए जियो हॉटस्टार की ओर रुख करें ऐसी फिल्मों और इन फिल्मों के पीछे मेहनत करने वाले लोगों के काम को इसी प्रकार सराहा जा सकता है कि वह दर्शकों से मिले स्नेह को प्ररेणा मानकर ऐसी ही अच्छे क्राफ्ट को लेकर अन्य फिल्में बनाए।

क्या है फिल्म की कहानी

बाल फिल्मों की कहानी ही सबसे अधिक प्रभावी फिल्म को बनाती है, मैं इसे बार-बार बाल फिल्म इसलिए कह रहा हूं कि फिल्म को देखने में सबसे अधिक मजा बच्चों को आने वाला है। फिल्म एक छोटे से हिल स्टेशन सुखताल की कहानी है, जहां रहने वाले ज्यादातार लोगों का व्यवसाय हिल स्टेशन में आने वाले पर्यटकों से होता हैं। लेकिन धीरे- धीरे हिल स्टेशन में बर्फ कम गिरने की वजह से पर्यटकों की संख्या में कमी होते जाती है। जिस वजह से गॉव के ज्यादातर मर्द कमाई के लिए शहर की ओर रुख करने लगते है, इसी गॉव के एक मोहल्ले में अमित सन्याल (प्रकाश) अपने मां-पिता और दो बच्चों के साथ रहता हैं। वह अपने बच्चों से बेहद ही प्यार करता है लेकिन उनकी छोटी- छोटी जरुरतों के समान के लिए उसें संधर्ष करना पड़ता है। चूंकि हिल स्टेशन में पर्टयकों की संख्या कम होने से उसकी सैलरी भी कम है लेकिन जब उसका वह होटल भी बंद होने लगता है जहां वह नौकरी करता है तो उसके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट जाता है, इन दुखों के पहाड़ के बीच पिता और बच्चों के बीच स्नेह को दिखाने का काम फिल्म की निर्देशक विवेक अन्चलिया ने किया है। फिल्म की कहानी और स्कीनप्ले भी विवेक अन्चलिया ने ही लिखा है जिसमें उनका साथ दिया है पंकज निहलानी नें।

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फिल्म में जो बच्चों के द्वारा अपने पिता को वापिस अपने साथ गांव में रहने के लिए पर्यावरण बचाने और बर्फ गिराने के छोटे- छोटे प्रयास किए गये है वह सोच ही एक लेखक को बेहतर बताने के लिए कामयाब है कि वह कितना अधिक काबिल लेखक है। फिल्म की जान फिल्म की कहानी है जिसे बेहद ही अच्छे ढंग से पेश किया गया है।  



अरविंद साहू (AD) Freelance मनोरंजन एंटरटेनमेंट Content Writer हैं जो विभिन्न अखबारों पत्र पत्रिकाओं वेबसाइट के लिए लिखते है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी सक्रिय है, फिल्मी कलाकारों से फिल्मों की बात करते है। एशिया के पहले पत्रकारिता विश्वविद्यालय माखन लाल चतुर्वेदी के भोपाल कैम्पस के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के छात्र है।

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